मंदिर का शाकाहारी मगरमच्छ जो ईश्वर का था दूत
A Story of Vegetarian Crocodile of Temple - Babiya Magarmachh
कहते है सभी को अपने कर्मो के हिसाब से फल भोगना पड़ता है . अच्छे कर्म तो अच्छा फल और बुरे कर्म का बुरा फल . इस बात को सिद्ध करती है एक मगरमच्छ की दास्तान .
यह दास्तान है एक शाकाहारी मगरमच्छ की जो 70 साल से एक मंदिर परिसर और उसके तालाब में भक्तो के बीच रह रहा था . जन्म से स्वभाव में था मांसहारी और लोगो के घातक , पर यह मगरमच्छ निकला बिलकुल अलग शाकाहारी और लोगो से प्रेम करने वाला .
क्या इस मंदिर की शक्ति से बदल गया इस मगरमच्छ का स्वभाव , क्या पुराने जन्मो के पुण्यो से आया था यह इस मंदिर परिसर में जहाँ उसे लोगो से इतना प्रेम मिला .
आइये जानते है कि कौन था यह मगरमच्छ और कैसे 70 सालो से यह शाकाहारी बनकर इस मंदिर में जीवन बिताया था . जानते है इस शाकाहारी मगरमच्छ की कहानी .
कौनसा है यह मंदिर : -
यह मंदिर दक्षिण भारत में केरल में श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर के नाम से जाना जाता है जो भगवान विष्णु का मंदिर है . मंदिर परिसर के चारो तरफ एक झील है जहाँ यह मगरमच्छ 1952 से रह रहा था और यही बड़ा हुआ था .
कहते है कि यह मगरमच्छ इस मंदिर की रखवाली करता था और इसे भगवान का दूत माना जाता था . यह मंदिर के लोगो से बहुत घुल मिल गया था और उन्हें शक्लो से जानता था .
कैसे रहता था यह मगरमच्छ मंदिर में
इस मगरमच्छ का नाम बबिया था . यह मंदिर में मगरमच्छ के स्वभाव से बिलकुल अलग शांत चित मन से रहता था . जब इसे भूख लगती तो इसकी आँखे किनारे पर आकर ईशारा कर दिया करती थी
जिसके बाद मंदिर के पुजारी इसे खाना दे दिया करते थे . खाना खाकर यह अपनी मस्ती में फिर से झील में तैरना शुरू कर देता था .
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शुद्ध शाकाहारी था यह मगरमच्छ
मगरमच्छ का स्वभाव है मांस खाना . पर आपको जानकर हैरानी होगी कि बबिया मगरमच्छ पूर्ण रूप से शाकाहारी था . वो जिस झील में रहता था , उसमे मछलियाँ भी रहती थी , पर आज तक उसने एक भी मछली को नही खाया है . मछलियों को उसके स्वभाव से कोई डर नही रहता था और वो सब उसके साथ आनंद से खेलती थी .
बबिया मगरमच्छ अपनी भूख सिर्फ भक्तो और मंदिर कर्मचारियों के द्वारा दिए गये प्रसाद , नारियल से मिटाता था .
इसे चावल और गुड का दलिया बहुत पसंद था जो मंदिर के लोग उसे समय समय पर दिया करते थे .
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मगरमच्छ का देव लोक गमन
70 साल की उम्र पाकर यह मगरमच्छ 9 सितम्बर 2022 (रविवार ) को देव लोक चला गया है .
गाजे बाजे के साथ मगरमच्छ की लाश को फूलो से सजाकर शव यात्रा निकाली गयी जिसमे हजारो लोगो ने भाग लिया . मंदिर के ट्रस्टी ने बताया कि मंदिर प्रांगण की जमीन में ही इस मगरमच्छ को समाधी दी गयी .
इस मंदिर के साथ ही यह मगरमच्छ भी हमेशा के लिए अमर रहेगा और युगों युगों तक इस मंदिर के साथ इसका भी नाम लिया जायेगा .
हो सकता है कुछ दिनों में यहा बबिया की एक समाधी बनाकर एक मगरमच्छ की मूर्ति स्थापित कर दी जाये जिससे की आने जाने वाले भक्त यहा इस देवदूत मगरमच्छ के दर्शन कर सके .
यदि ऐसा हुआ तो इस मंदिर का नाम भी भारत के जीव जन्तुओ के मंदिर में शामिल हो जायेगा .
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Conclusion (निष्कर्ष )
दोस्तों इस आर्टिकल में आपने जाना एक चमत्कारी मगरमच्छ के बारे में जिसने अपनी पूरी जिंदगी भगवान की सेवा में लगा दी . इस मगरमच्छ का नाम बबिया था जो गत रविवार बैंकुठ धाम की यात्रा पर निकल गया .
हमने इस आर्टिकल में बताया कि कैसे यह मगरमच्छ दुसरे मगरमच्छो से बिलकुल अलग था और कैसे लोगो ने इसे महासमाधी दी .
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